आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "rashmirathi ram dhari singh dinkar ebooks"
Doha के संबंधित परिणाम "rashmirathi ram dhari singh dinkar ebooks"
अर्ध-उर्ध मधि सुरति धरि
अर्ध-उर्ध मधि सुरति धरि, जपै जु अजपा जाप।'दया' लहै निज धाम कूँ, छूटै सकल संताप॥
दयाबाई
राम नाम रति राम गति
राम नाम रति राम गति, राम नाम बिस्वास।सुमिरत सुभ मंगल कुसल, दुहुँ दिसि तुलसीदास॥
तुलसीदास
हृदय कमल में सुरति धरि
हृदय कमल में सुरति धरि, अजपा जपै जो कोय।बिमल ज्ञान प्रगटै तहाँ, कलमख डारै खोय॥
दयाबाई
राम नाम मनिदीप धरु
राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरीं द्वार।तुलसी भीतर बाहेरहुँ, जौं चाहसि उजिआर॥
तुलसीदास
कतहू भूलो मौंनि धरि
कतहू भूलो मौंनि धरि, कतहू करि बकबाद।सुन्दर या अभिमान तें, उपज्यौ बहुत बिषाद॥
सुंदरदास
सुन्दर धीरज धारि तूं
सुन्दर धीरज धारि तूं, गहि प्रभु कौं बिश्वास।रिजक बनायौ रामजी, आवै तेरै पास॥
सुंदरदास
नासा आगे दृष्टि धरि
नासा आगे दृष्टि धरि, स्वाँसा में मन राख।'दया' दया करिकै कह्यौ, सतगुर मो सूँ भाख॥
दयाबाई
राम-नाम-मनि-दीप धरु
राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार।‘तुलसी’ भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥
तुलसीदास
बनिता बहु बसु-आस धरि
बनिता बहु बसु-आस धरि, पहुँची आलय जाय।बिस्व-विदिति बसुपति बिना, नलिनी ज्यों मुरझाय॥
मोहन
तनिक न धीरज धरि सकै
तनिक न धीरज धरि सकै, सुनि धुनि होत अधीन।बंसी बंसीलाल की, बंधन कों मन-मीन॥
श्रीभट्ट
बैठत इक पग ध्यान धरि
बैठत इक पग ध्यान धरि, मीनन कौं दुख देत।बक मुख कारै हो गए, रसनिधि याही हेत॥
रसनिधि
ररा ममा को ध्यान धरि
ररा ममा को ध्यान धरि, यही उचारै ग्यान।दुविध्या तिमिर सहजैं मिटै, उदय भक्ति को भान॥