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मो मन मेरी बुद्धि लै
मो मन मेरी बुद्धि लै, करि हर कौं अनुकूल।लै त्रिलोक की साहिबी, दै धतूर कौ फूल॥
मतिराम
नथ मुक्ता झलकत पगे
नथ मुक्ता झलकत पगे, नासा स्वास सुबास।उरझि पर्यौ यह पीय मन, मनहुँ प्रेम के पास॥
बाल अली
जहिया जन्म मुक्ता हता
जहिया जन्म मुक्ता हता, तहिया हता न कोय।छठी तुम्हारी हौं जगा, तू कहाँ चला बिगोय॥
कबीर
जौ तूं मेरी सीख ले
जौ तूं मेरी सीख ले, तौ तूं सीतल होइ।फिरि मोही सौं मिलि रहै, सुन्दर दुःख न कोइ॥
सुंदरदास
मारे मरै जु प्रेम के
मारे मरै जु प्रेम के, ढूँढ़ फिरत ही लाल।जिन घट वेदन विरह की, ते क्यौं जियैं जमाल॥
जमाल
मरी डरी कि टरी बिथा
मरी डरी कि टरी बिथा, कहा खरी, चलि चाहि।रही कराहि कराहि अति, अब मुँह आहि न आहि॥
बिहारी
तजि मुकता भूखन रचैं
तजि मुकता भूखन रचैं, गुंजन के बसु जाम।कहा करै गुन जौहरी, बसि भीलन के ग्राम॥
दीनदयाल गिरि
रिद्धि सिद्धि की कामना
रिद्धि सिद्धि की कामना, कबहूँ उपजे नांहिं।सुन्दर ऐसै संतजन, मुक्ति सदा जग मांहिं॥
सुंदरदास
गज-मुक्ता-फल! करु न मद
गज-मुक्ता-फल! करु न मद, निज अमोलता जान।तुव कारन पितु-द्विरद के, गये बिपिन बिच प्रान॥
मोहन
पिया मेरे और मैं पिया की
पिया मेरे और मैं पिया की, कुछ भेद न जानो कोई।जो कुछ होय सो मौज से होई, पिया समरथ करें सोई॥
संत सालिगराम
मुकता सुख-अँसुआ भए
मुकता सुख-अँसुआ भए, भयौ ताग उर-प्यार।बरुनि-सुई तें गूँथि दृग, देत हार उपहार॥
दुलारेलाल भार्गव
सुन्दर आसन मारि कै
सुन्दर आसन मारि कै, साधि रहे मुख मौन।तन कौ राखै पकरि कैं, मन पकरै कहि कौन॥
सुंदरदास
पर धी लै करि घर धरै
पर धी लै करि घर धरै, पर धन हरि-हरि पाइ।पर निंदा निस दिन करै, सुन्दर मुक्ति हो जाइ॥
सुंदरदास
ब्रीद मेरे साइयां को
ब्रीद मेरे साइयां को, तुका चलावे पास।सुरा सोहि लरे हम से, छोरे तन की आस॥