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राग मृत्यु की भैरवीनाचत दे दे ताल।
'मन की बात' मनुष्य कोकरती रही तबाह।
गर्मी की ऋतु में सखीमेघ घिरे आकाश।
मन की गंगा बह रहीदोहे बनते रोज़॥
कोविड का घंटा बजाआकर तेरे द्वार।
भीषण कोविड के समयफुलवारी आबाद।
मृत्यु नदी का कर दियाकितना चौड़ा पाट।
धरती का मग छोड़करचला व्योम के पंथ।
पहले अंधा एक थाअब अंधों की फ़ौज।
राजा गए शिकार कोलिए दुनाली साथ।
कोरोना रोना हुआचलता हिंसक चाल।
अणिमा गरिमा शक्तियाँसब कुछ तेरे पास।
रोदन करती रुदालीजो उनका व्यवसाय।
बाबा ओ बाबा! अगरहोता ना विज्ञान।
खाल खींचकर भुस भराऔर निचोड़े हाड़।
कितना कितना कर दिया,कितना विकट विकास।
तूने आकर खोल दीएक विचित्र दुकान।
चिता धधकती नदी तटव्यक्ति हुआ असहाय।
'जीवन' लिखना बंद करलिखने से क्या होय।
जनता ने राजा चुनानया बनाया तंत्र।
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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