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उर अनुपम उनको लसै
उर अनुपम उनको लसै, सुखमा को अति ठाट।मनहु सुछवि हिय भरि भये, काम शृंगार कपाट॥
रघुराजसिंह
और अरिस्या विरह दुख
और अरिस्या विरह दुख, हिलग अग बड़ दोई।सिखी धूम्र औ ताप बिन, जिमि कहु कदा न होइ॥
दयाराम
सुन्दर चितवै और कछु
सुन्दर चितवै और कछु, काल सु चितवै और।तूं कहुं जाने की करै, वहु मारै इहिं ठौर॥
सुंदरदास
और सकल अघ-मुचन कौ
और सकल अघ-मुचन कौ, नाम उपायहिं नीक।भक्त-द्रोह कौ जतन नहिं, होत बज्र की लीक॥
ध्रुवदास
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
तरे और कों तारही
तरे और कों तारही, लौकालोहू न्याय।नौका ज्यों पाखान ज्यों, बूडे देत बुडाय॥
दीनदयाल गिरि
और प्रसंस लगें न रुचि
और प्रसंस लगें न रुचि, कीनी अति मनुहारि।जेसि मनोहर माधुरी, लगें प्रेम की गारि॥
दयाराम
और धर्म अरु कर्म करत
और धर्म अरु कर्म करत, भव-भटक न मिटिहै।जुगम-महाशृंखला जु, हरि-भजनन कटिहै॥
चतुर्भुजदास
समली और निसंक भख
समली और निसंक भख, अबंक राह म जाह।पण धण रौ किम पेखही, नयण बिणट्ठा नाह॥
सूर्यमल्ल मिश्रण
राम नाम कौं छाडि कै
राम नाम कौं छाडि कै, और भजै ते मूढ।सुन्दर दुख पावै सदा, जन्म-जन्म वै हूढ॥
सुंदरदास
तुका और मिठाई क्या करूँ
तुका और मिठाई क्या करूँ, पाले विकार पिंड।राम कहावे सो भली रूखी, माखन खीर खांड॥
संत तुकाराम
जिउ स्वप्ना और पेखना
जिउ स्वप्ना और पेखना, ऐसे जग को जान।इन मैं कछु साचो नहीं, नानक बिन भगवान॥
गुरु तेग़ बहादुर
बाल ज्वानि और बृद्धपन
बाल ज्वानि और बृद्धपन, तीनि अवस्था जान।कहु नानक हरि भजन बिनु, बिरथा सब ही मान॥
गुरु तेग़ बहादुर
‘व्यास’ न कथनी और की
‘व्यास’ न कथनी और की, मेरे मन धिक्कार।रसिकन की गारी भली, यह मेरौ सिंगार॥