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ग्राम-सिंह भूखो बिपिन
ग्राम-सिंह भूखो बिपिन, देखि सिंह को रूप॥सुनि-सुनि भूखैं गलिन में, सर्व स्वान वेकूप॥
भगवत रसिक
यह मंजावलि मंजु वर
यह मंजावलि मंजु वर, इस्क सिलीमुख-ग्राम।रसिकन हृदय प्रबेस करि, राजत अति अभिराम॥
सहचरिशरण
तजि मुकता भूखन रचैं
तजि मुकता भूखन रचैं, गुंजन के बसु जाम।कहा करै गुन जौहरी, बसि भीलन के ग्राम॥