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लखत रहैं पिय चित्र कौं
लखत रहैं पिय चित्र कौं, दरसन चित्र निहारि।चित्र लखत पिय कौ सखी, रही चित्र-सी नारि॥
दौलत कवि
एक बूंद तें चित्र यह
एक बूंद तें चित्र यह, कैसौ कियौ बनाइ।सुन्दर सिरजनहार की, रचना कही न जाइ॥
सुंदरदास
चित्र चतेरा जो करै
चित्र चतेरा जो करै, रचि पचि सूरत बाल।वह चितवनि वह मुर चलँन, क्यों कर लिखै जमाल॥
जमाल
पंच तत्त गुन तीन के
पंच तत्त गुन तीन के, पिंजर गढ़े अनंत।मन पंछी सो एक है, पारब्रह्म को अतं॥
संत केशवदास
संग पाय कै बुधन के
संग पाय कै बुधन के, छिद्र निहारैं नीच।बिलहिं विलोकै भुजंग ज्यों, रंगभवन के बीच॥
दीनदयाल गिरि
जिह्वा गुन गोविंद भजहु
जिह्वा गुन गोविंद भजहु, करन सुनहु हरि नाम।कहु नानक सुन रे मना, परहि न जम के धाम॥
गुरु तेग़ बहादुर
ब्रजदेवी के प्रेम की
ब्रजदेवी के प्रेम की, बँधी धुजा अति दूरि।ब्रह्मादिक बांछत रहैं, तिनके पद की धूरि॥
ध्रुवदास
प्रिय-परिकर के सुघरजन
प्रिय-परिकर के सुघरजन, बिरही-प्रेम-निकेत।देखि कबै लपटायहों, उनतें हिय करिहेत॥
नागरीदास
बिजना हाँकति चतुर तिय
बिजना हाँकति चतुर तिय, त्यों-त्यों बढ़ि हिय ज्वाल।पुनि मनहिं मन गुनति कछु, कारण कवन जमाल॥
जमाल
शुतर गिरयो भहराय के
शुतर गिरयो भहराय के, जब भा पहुँच्यो काल।अल्प मृत्यु कूँ देखि के, जोगी भयो जमाल॥
जमाल
गर्व भुलाने देह के
गर्व भुलाने देह के, रचि-रचि बाँधे पाग।सो देही नित देखि के, चोंच सँवारे काग॥
मलूकदास
पद्मनाभ के नाभि की
पद्मनाभ के नाभि की, सुखमा सुठि सरसाय।निरखि भानुजा धार को, भ्रमि-भ्रमि भंवर भुलाय॥
रघुराजसिंह
चतुर बरन को विप्र गुरु
चतुर बरन को विप्र गुरु, अतिथि सबन गुरु जानि।रतनावलि तिमी नारि को, पति गुरु कह्यो प्रमानि॥