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ज्ञानी तपसि अनंत ये
ज्ञानी तपसि अनंत ये, शुद्ध प्रेमि कहूँ एक।जैसें करि हरि ज्यूह त्यों, सिंह न होहि अनेक॥
दयाराम
है सिय बर तब इश्क में
है सिय बर तब इश्क में, मुझे तकार पकार।गहे रहत त्यागत नहीं, बिह्वल करौं पुकार॥
युगलान्यशरण
इश्क उसी की झलक है
इश्क उसी की झलक है, ज्यौं सूरज की धूप।जहाँ इस्क तहँ आप हैं, क़ादिर नादिर रूप॥
नागरीदास
एक एक देख्यो सकल घट
एक-एक देख्यो सकल घट, जैसे चंद की छांह।वैसे जानो काल जग, एक-एक सब मांह॥
संत शिवनारायण
पंच तत्व की देह में
पंच तत्व की देह में, त्यौं सुर व्यापक होइ।विस्वरूप में ब्रह्म ज्यौं, व्यापक जानौ सोइ॥
रसनिधि
जगि-जगि, बुझि-बुझि जगत में
जगि-जगि, बुझि-बुझि जगत में, जुगनू की गति होति।कब अनंत परकास सों, जगि है जीवन-जोति॥
दुलारेलाल भार्गव
कब गहवर की गलिन में
कब गहवर की गलिन में, फिरिहौं होइ चकोर।जुगुलचंद-मुख निरखिहौं, नागरि-नवलकिसोर॥
ललितकिशोरी
मन कौ साधन एक है
मन कौ साधन एक है, निस दिन ब्रह्म बिचार।सुन्दर ब्रह्म बिचारतें, ब्रह्म होत नहिं बार॥