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प्रीतम की जीवन जरी
प्रीतम की जीवन जरी, रसिकन की सुर धेनु।भक्त अनन्यन की लता, सुर तरु सिय पदरेनु॥
युगलान्यशरण
प्रीतम कठिन कृपान से
प्रीतम कठिन कृपान से, मति अंतर उरभार।सुमन माँझ सुरति सजन, जिन्ह लागै तित धार॥
युगलान्यशरण
प्रीतम नहिं कछु लखि सक्यो
प्रीतम नहिं कछु लखि सक्यो, आलि कही तिय कान।नथ उतारि धरि नाक तं, कह जमाल का जान॥
जमाल
दादू प्रीतम के पग परसिये
दादू प्रीतम के पग परसिये, मुझ देखण का चाव।तहाँ ले सीस नवाइये, जहाँ धरे थे पाव॥
दादू दयाल
प्रीतम कौ तिय सौं मिलन
प्रीतम कौ तिय सौं मिलन, ह्वै परतच्छ कहाय।नेह भरे नैननि दोऊ, रहे अमित सुख पाय॥
दौलत कवि
प्रीतम इतनी बात कौ
प्रीतम इतनी बात कौ, हिय कर देखु बिचार।बिनु गुन होत सु नैकहूँ, सुमन हिए कौ हार॥
रसनिधि
ब्रजदेवी के प्रेम की
ब्रजदेवी के प्रेम की, बँधी धुजा अति दूरि।ब्रह्मादिक बांछत रहैं, तिनके पद की धूरि॥
ध्रुवदास
चाह धरै प्रीतम मिलन
चाह धरै प्रीतम मिलन, सजै सिंगार अपार।धरै द्वार दृग दीप द्वै, बारबधू तिहिं बार॥
दौलत कवि
प्रीतम आगम सुनत तिय
प्रीतम आगम सुनत तिय, हिय मैं अति हुलसात।आनंद के अँसुवा नयन, मुकता सुरत दिवात॥
दौलत कवि
कै सांई की बंदगी
कै सांई की बंदगी, कै सांई का ध्यांन।सुन्दर बंदा क्यों छिपै, बंदे सकल जिहांन॥
सुंदरदास
ज्यौं अमली की ऊंघतें
ज्यौं अमली की ऊंघतें, परी भूमि पर पाग।वह जानै यह और की, सुन्दर यौं भ्रम लाग॥
सुंदरदास
पद्मनाभ के नाभि की
पद्मनाभ के नाभि की, सुखमा सुठि सरसाय।निरखि भानुजा धार को, भ्रमि-भ्रमि भंवर भुलाय॥
रघुराजसिंह
इश्क उसी की झलक है
इश्क उसी की झलक है, ज्यौं सूरज की धूप।जहाँ इस्क तहँ आप हैं, क़ादिर नादिर रूप॥
नागरीदास
तूहूँ ब्रज की मुरलिया
तूहूँ ब्रज की मुरलिया, हमहूँ ब्रज की नारि।एक बास की कान करि, पढ़ि-पढ़ि मंत्र न मारि॥