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अपनी छाया देषि कै
अपनी छाया देखि कै, कूकर जानै आंन।सुन्दर अति ही जोर करि, भुसि-भुसि मूवौ स्वांन॥
सुंदरदास
अपनी राह न छाँड़िये
अपनी राह न छाँड़िये, जौ चाहहु कुसलात।बड़ी प्रबल रेलहु गिरत, और राह में जात॥
सुधाकर द्विवेदी
अपने अपने कंत सौं
अपने अपने कंत सौं, सब मिलि खेलहिं फाग।सुन्दर बिरहनि देखि करि, उसी बिरह कै नाग॥
सुंदरदास
अपना बल सब छाडि दे
अपना बल सब छाडि दे, सेवै तन मन लाइ।सुन्दर तब पिय रीझि करि, राखै कण्ठ लगाइ॥
सुंदरदास
सुन्दर अपने भाव करि
सुन्दर अपने भाव करि, पूजै देवी देव।यह मैं पायौ पुत्र धन, बहुत करी तीं सेव॥
सुंदरदास
अपना भंजन भरि लिया
अपना भंजन भरि लिया, उहाँ उता ही जाणि।अपणी-अपणी सब कहैं, दादू बिड़द बखाणि॥
दादू दयाल
सुन्दर अपने भाव तें
सुन्दर अपने भाव तें, मूरत पीयौ दुद्ध।ठाकुर जान्यौं सत्य करि, नामां कौ उर सुद्ध॥
सुंदरदास
अपने अँग के जानि कै
अपने अँग के जानि कै जोबन-नृपति प्रवीन।स्तन, मन, नैन, नितंब कौ बड़ौ इजाफा कीन॥
बिहारी
सुन्दर अपने भाव तें रूप
सुन्दर अपने भाव तें, रूप चतुर्भुज होइ।याकौं ऐसौई दृसै, वाकै रूप न कोइ॥