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रामधारी सिंह दिनकर: कविता और उनका व्यक्तित्व
मुझे गर्व है कि अपने देश में मैं सर्वप्रथम रहा हूँ, जिसने छठे दशक में दिनकर
एवगेनी पित्रोविच चेलीशेव
अर्धनारीश्वर
एक नयन में गरल, एक में संजीवन की धार॥जटाजूट में लहर पुण्य की, शीतलता-सुख-कारी।
रामधारी सिंह दिनकर
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अरुणोदय
जय हो, कि स्वर्ग से छूट रही आशिष की ज्योतिधारा है।बज रहे किरण के तार, गूँजती है अंबर की गली-गली,
रामधारी सिंह दिनकर
वसंत के नाम पर
समय माँगता मूल्य मुक्ति का, देगा कौन मांस की बोटी?पर्वत पर आर्दश मिलेगा, खाएँ चलो घास की रोटी।
रामधारी सिंह दिनकर
पढ़क्कू की सूझ
कहा पढ़क्कू ने सुनकर, “तुम रहे सदा के कोरे!बेवक़ूफ़! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़े!
रामधारी सिंह दिनकर
हिंद महासागर में छोटा-सा हिंदुस्तान
चूँकि मॉरिशस के हिंदुओं में से अधिकांश बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग हैं, इसलिए हिंदी