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शंख घोष के उद्धरण

प्रतिष्ठान को तोड़ने की चाहत यौवन का धर्म है। जीवन को मृत्यु के सम्मुख रखकर देखना, मृत्यु को जीवन के सामने रखकर देखना यौवन का धर्म है। लगातार हर क्षण मृत्यु पर नज़र रखना, उसपर आघात करना, उसके द्वारा आहत होना यौवन का धर्म है।

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