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चाणक्य के उद्धरण

मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है, न कि ऊँचे आसन पर बैठा हुआ उत्तम होता है। जैसे ऊँचे महल के शिखर पर बैठकर भी कौआ, कौआ ही रहता है, गरुड़ नहीं बनता।