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शंख घोष के उद्धरण

कविता की दुनिया में भी यदि कोई प्रतिष्ठानों को तोड़ना चाहें तो उनके लिए भी ज़रूरी है सिर्फ़ ख़ामोशी से कविताएँ लिखते जाना, जो कि सामाजिकों के लिए अनायास व्यवहार या आस्वाद योग्य न हो, जो गुप्त पदसंचार से सबको घेर लेंगी। तब प्रतिष्ठान के विरूद्ध स्वतंत्र विद्वेष जताने की उतनी ज़रूरत नहीं रह जाती, रचना स्वयं ही तब प्रतिष्ठान विरोधी बनकर खड़ी हो जाती है।

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