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हरिशंकर परसाई के उद्धरण

जूते खा गए—अज़ब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाए कैसे जाते है? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा सकता है।