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शंख घोष के उद्धरण

जिस झूठे सामाजिक प्रलेप से हम लोग सत्य के चेहरे को ढँके रहते हैं, उस लेप के पुँछ जाने का भय हमें सताता है, इसलिए हम उसे जी-जान से ढँके ही रखना चाहते हैं।

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