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मोहन राकेश के उद्धरण

जहाँ तक चलते जाने का प्रश्न है, चलते जाया जा सकता है। परंतु जहाँ ठहरने का प्रश्न आता है, वहाँ बहुत-सी अपेक्षाएँ जाग्रत हो उठती हैं और उन सबकी पूर्ति असंभव होने से, फिर चल देने की धुन समा जाती है।