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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

जब लोग दरिद्र हो जाते हैं, तब बाहर की ओर गौरव की खोज में भटकते हैं। तब वे केवल बातें कहकर गौरव करना चाहते हैं, तब वे पुस्तकों से श्लोक निकालकर गौरव का माल-मसाला भग्न स्तूप से संचय करते रहते हैं।