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शंख घोष के उद्धरण

हमारे जीवनयापन को टिड्डियों के झुण्ड की तरह शब्दावलियाँ घेर रही हैं, लेकिन क्रमशः पता चलता है कि धीरे धीरे उसका परिवहन नष्ट हो गया है।

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