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हरिशंकर परसाई के उद्धरण

गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिकी है। गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलती है, जिनके मालिक के पास हाथ छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है।

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