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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

दुःख से होने वाला मिलन टूटने वाला नहीं है। इसमें न भय है और न संशय। आँसुओं से जो हँसी फूटती है वह रहती है, रहती और चिर दिन रहती है।