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शंख घोष के उद्धरण

भद्रता का कंठ एक प्रकार की रीति में आबद्ध होने के कारण कई बार सुंदर लेकिन निर्जीव होता है, बात कहने का सही स्वर केवल अंतरंग मित्रों के साथ बातचीत के दौरान ही पता चलता है। कविता भी उस अंतरंग व्यक्तित्व के स्वर की तलाश करती है।

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