आँख वाले प्रायः इस तरह सोचते हैं कि अँधों की, विशेषतः बहरे-अँधों की दुनिया, उनके सूर्य-प्रकाश से चम-चमाते और हँसते-खेलते संसार से बिल्कुल अलग हैं और उनकी भावनाएँ और संवेदनाएँ भी बिल्कुल अलग हैं और उनकी चेतना पर उनकी इस अशक्ति और अभाव का मूल-भूत प्रभाव है।