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नामवर सिंह के उद्धरण

आलोचना के इतिहास के बारे में जितनी पुस्तकें लिखी गई हैं, वे अपूर्ण-अधूरी ही नहीं हैं, बल्कि उनकी जो मूल दृष्टि है, वह अभावों का दुर्दांत उदाहरण है।