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गुर्जरी तोड़ी

gurjari toDi

यतींद्र मिश्र

यतींद्र मिश्र

गुर्जरी तोड़ी

यतींद्र मिश्र

और अधिकयतींद्र मिश्र

    यह राग हमें बताता है

    कि हम अभी भी विश्वास कर सकते हैं

    रिश्तों के डोर से बँधी इस दुनिया पर

    नाउम्मीदी को बुहार कर फेंक सकते हैं घर के बाहर

    सूर्य के काम पर जाने से पहले तारे

    जिस तरह आसमान बुहार कर साफ़ करते हैं

    और आकाशगंगाएँ सजाती हैं नक्षत्रों का तोरण

    इस राग के समय में हमारे

    दुःखों के ढेरों प्रहर बीतते हैं

    सुनहरी और लाल रंग में रँगी हुई

    सूर्यादय की उज्ज्वल इबारत की तरह

    दुःख हर नई लय के साथ

    थोड़ा गाढ़ा होता जाता है

    थोड़ा ज़्यादा सुनहरा

    श्रीमंतों, गुणीजनों और रसिकों के दायरे से अलग

    अपनी छोटी कामना का सपना पाले हुई

    एक हतप्रभ चिड़िया भी इसके सुरों को पहचानती है

    और फूलों से रंग लेकर इसमें भरती है

    इस राग का निर्मल पानी बचाता रहता है

    हमेशा प्यास में दर-ब-दर भटकने से हमें

    अनिश्चय की अंतहीन बावड़ी की ओर

    जाने से रोकती है इसकी अति कोमल आवाज़

    यह हमारे अपनों के बीच का राग है

    चिड़ियों की वत्सल लय से भरा

    और एक स्त्री की करुण पुकार से गूँजता हुआ

    शताब्दियों पहले प्रेम में धोखा हुआ था जिसे

    और जो चली गई थी जंगलों तक पैदल

    आरोह-अवरोह की सीढ़ियाँ लाँघ कर

    प्रेम में पागल अपने हिस्से का दुःख बटोरने

    राग गुर्जरी तोड़ी से बात करो

    तब जाकर पता लगता है

    प्रेम के वैभव का बखान करने वाले

    इस राग के घराने में

    बहादुरी विलासख़ानी सहेली और मियाँ की तोड़ी

    पहले से ही मौजूद हैं

    और अपने-अपने ढंग से धुलने में लगी हैं

    हमारे दुःखों की मैली चादर को

    वे जानती हैं हमारी असफल प्रेम-कथाओं के ब्यौरे

    और हमसे अनजाने ही छूट गए आत्मीय जनों के पते

    दिन के सहज स्थापत्य में

    इस राग का होना हमें बताता है

    दिन का आरंभ ही जीवन का आरंभ है

    नए सिरे से शुरू की जा सकती है यह दुनिया

    एक बार फिर हमारे गाढ़े सुनहरे दुःख की तरह

    दिनारंभ प्रेम के साथ हो सकता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतींद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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