गोरू-चरवाह

goru charvah

रमाशंकर सिंह

रमाशंकर सिंह

गोरू-चरवाह

रमाशंकर सिंह

और अधिकरमाशंकर सिंह

    अवध क्षेत्र में 'गोरू-चरवाह' हैं वैसे

    जैसे मलीहाबाद में आम

    बनारस में मल्लाह

    गया-जगन्नाथ में पंडे

    कायदे से वे गाय-भैंस चराने का काम करते हैं

    कुछ पूर्णकालिक होते हैं

    कुछ अंशकालिक

    लेकिन वे 'मनई' भी चराते हैं

    वे सहज ज्ञानी होते हैं

    बादल और खेत की तासीर जानते हैं

    जानते हैं कि अगला ग्राम प्रधान कौन होगा

    यहाँ तक कि वे प्रधानमंत्री के बारे में जानते हैं

    कि रात में प्रधानमंत्री खाते क्या हैं

    थोड़े से दुष्ट होते हैं वे

    वे गाय-गोरू के साथ

    मनुष्यों की भी फ़ितरत जानते हैं

    वे जानते हैं 'चारे की तलाश' में

    चालाक जानवर जाते हैं किधर

    गोरू-चरवाह इलाक़े भर की ख़बर रखते हैं

    किसके पास कितनी ताक़त है,

    वे सब जानते हैं

    गोरू-चरवाह किसी पेड़ को

    अपनी लाठी से हूर-हूर कर सुखा सकते हैं

    वे किसी भी तरफ़ जाकर

    एक पगडंडी बना सकते हैं

    यह काम संन्यासियों के अलावा केवल वे ही जानते हैं

    गोरू-चरवाह चीज़ों को मिल-बाँटकर खाते हैं—

    बौद्ध-भिक्षुओं की तरह

    गोरू-चरवाह जानते हैं कि

    लाठी से किस जगह से मारना है

    जब किसी जानवर को प्यार करना है

    या सही में मारना है

    लाठी उनका प्यार करने वाला हाथ है

    गोरू-चरवाह जानते हैं

    साँप कैसे और कब मारा जाना चाहिए

    जब ताक़तवर गाली देते हैं

    वे उसकी फ़सल दूसरे दिन चरवा देते हैं

    अपनी पसंदीदा गाय से

    और रात में मुस्कराते हैं घर जाकर—

    नक्षत्रों को देखते हुए

    गोरू-चरवाह कुछ भी कर सकते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रमाशंकर सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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