कमल शुक्ल का यह नया उपन्यास लेखक की सशक्त लेखनी का पिरचायक है। इसमें दासी प्रथा के कलंक का पर्दाफाश ही नहीं किया गया है अपितु लेखक ने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में उन्नीसवीं शताब्दी में कंपनी सरकार और उससे मिलीभगत रखने वाले सामंतों के अत्याचारों पर भी करारी चोट की है।
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