श्रीवास्तव जी का दूसरा उपन्यास 'विजय' उच्चवर्गीय समाज के विधवा-जीवन की समस्या को लेकर चला है। अपनी इस कृति में भी प्रतापनारायण श्रीवास्तव ने यथार्थवादिता का अवलम्बन ग्रहण किया है। इस दृष्टि से इनका ऐतिहासिक उपन्यास 'बेकसी का मजाक' उल्लेखनीय है। इसमें 1857 ई. के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के सच्चे एवं सजीव चित्र प्रस्तुत करन में इन्हें बहुत सफलता मिली है।
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