सुरख़ाब के पर प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने अपने विचारों का एक खाका तैयार करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक में रचनाकार ने समाज पर व्यंग्य किया है। जिस समाज में लोग रहते है उसी समाज में गंदगी फैलाते है।
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