यह शरतचंद्र जी की शुरूआती रचनाओं में से है कहते हैं कि उन्होंने सिर्फ 33 दिनों में इस उपन्यास को लिख दिया था और उस समय उनकी उम्र बाईस साल के आस पास रही होगी।
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