गोविन्द मिश्र के उपन्यास 'शाम की झिलमिल' में अनेक वृद्धों की समस्याओं को विविध-परिप्रेक्ष्यों में चित्रित किया गया है। बुढ़ापे में अकेले हो जाने पर, फिर जी भर जी लेने की उद्दाम इच्छा, उसे साकार करने के प्रयत्न, एक-पर-एक कुछ हास्यास्पद, कुछ गंभीर, कुछ बेहद गंभीर कि जीवन इहलोक और परलोक में इस पार से उस पार बार-बार बह जाता हो….कोई सीमारेखा नहीं। हताशा, जीने की मजबूरी, कुछ नया लाने की कोशिश…दरम्यान उठते जीवन सम्बन्ध मूलभूत प्रश्न गोविन्द मिश्र का यह बारहवाँ उपन्यास वृद्धावस्था के अकेलेपन और जिजीविषा के द्वन्द और टकराहट पर लिखा गया संभवतः हिंदी का पहला उपन्यास है।
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