1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुःस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुःस्साहस की कीमत अश्लीलता को लेकर लगाए गए इल्ज़ाम और मुक़दमे के रूप में चुकानी पड़ी।
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
टिकट ख़रीदिए