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पुस्तक: परिचय

गणपतिचंद्र गुप्त ने 'राम काव्य परंपरा' जैसी काव्यधारा को वैज्ञानिक दृष्टि से आंकते हुए इसका नामकरण 'पौराणिक प्रबंध काव्य परंपरा' किया है। कारण कि मध्यकालीन हिंदी साहित्य में रामकाव्य से कई गुना अधिक समृद्ध काव्य परंपरा शिवभक्ति-काव्य, भक्ति-काव्य और हनुमद्भक्ति-काव्य की रही है गणपतिचंद्र गुप्त हिंदी के प्रखर आलोचक हैं। वह नए समुदाय के हैं जिनकी अभिव्यक्तियाँ अपने अधिकारों को लेकर समाज में सर्वाधिक मुखर हैं।

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