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पुस्तक: परिचय

रस-सिद्धान्त की प्रमुख समस्याएं हैं-रस का अर्थ है आनंद, जो आत्मगत होता है और विषयगत नहीं।रस नाट्यगत नहीं हो सकता, बल्कि नाट्य, रस का माध्यम मात्र है। व्यभिचारी या संचारी भाव, स्थायी भावों की तुलना में कम समय तक टिकते हैं परिस्थिति के हिसाब से स्थायी भाव भी अपने मूल रस से हटकर दूसरे रसों में बदल सकते हैं। कविगत रस की व्याख्या के मुताबिक, कवि की अनुभूति ही मूल भाव है। काव्यगत स्थायी भाव का मतलब, हर पात्र के स्थायी भाव से नहीं है, बल्कि कवि के भाव से है।

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