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लेखक : नरेन्द्र भानावत

प्रकाशक : रोशन लाल जैन एंड संस, जयपुर

प्रकाशन वर्ष : 1965

श्रेणियाँ : साहित्य एवं भाषा विषयक

पृष्ठ : 139

सहयोगी : सरदार शहर पब्लिक लाइब्रेरी

राजस्थानी साहित्य : कुछँ प्रवृतियाँ

पुस्तक: परिचय

राजस्थानी साहित्य की शुरुआत 11वीं शताब्दी में हुई थी और यह कई रूपों और शैलियों में लिखा गया है। राजस्थानी भाषा सौरसेनी प्राकृत भाषा से विकसित हुई है. पहले राजस्थानी को चारणी या डिंगल के नाम से जाना जाता था, जो गुजराती के क़रीब थी। राजस्थानी साहित्य की प्रवृत्तियांँ इस प्रकार हैं: चारण साहित्य राजस्थानी साहित्य की शुरुआत में चारणों ने इसे लिखा था। चारण साहित्य में कई शौर्य-संस्कार किए जाते हैं। श्रीधर व्यास इस युग के पहले उल्लेखनीय चारण कवि थे, जिन्होंने पौराणिक और धार्मिक दोनों के साथ-साथ चरण कविता के ऐतिहासिक और वीर रूपों में योगदान दिया। मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य इस दौरान राजस्थान के महान राजाओं और सेनानियों का उल्लेख करते हुए वीरतापूर्ण काव्य लिखा गया। "ढोला मारू रा दूहा" जैसे लोक-काव्यों और "बेलि क्रिसन रुकमणी री" जैसी अलंकृत काव्य कृतियों ने राजस्थानी साहित्य की श्रीवृद्धि में योगदान दिया। संत साहित्य मीरा, दादू, गोरखनाथ और जसनाथजी सहित कई संतों ने इस शैली में रचनाएँ की हैं। संत लालदासजी ने लिखा लालदासजी चेथयवनिया और राजस्थान के भक्ति साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया।

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