'आग ही आग' प्रह्लाद चंद्र दास का तीसरा कहानी संग्रह है। इससे पहले उनके दो कहानी संग्रह 'पुटूस के फूल' और 'पराये लोग' आ चुके हैं। उनके इस कहानी संग्रह में दस कहानियां संग्रहित हैं। प्रह्लाद चंद्र दास अपने समय और समाज की संरचना में वर्ग, जाति-वर्ण और सत्ता संबंधी समीकरणों के अंतर्विरोधों पर खास नजर रखते हैं। उनका लेखन मध्यवर्गीय जीवन प्रसंगों या स्त्री-पुरुष के संबंधों तक ही सीमित नहीं है। उनकी कहानियों का परिवेश गांवों से लेकर शहर, कोयला खदानों से लेकर नगरों के कार्यालयों, नेताओं और बाबाओं तक फैला है। वह एक सामान्य अनुभूति को बड़े ही सरल तरीके से एक अर्थपूर्ण सांचे में ढालते हैं। प्रह्लाद चंद्र दास ने संग्रह की कहानियों में विभिन्न आयामों से मानव जीवन, समाज और अर्थ-व्यवस्था को चित्रित करने का सराहनीय प्रयास किया है।