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लेखक: परिचय

हालावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि हरिवंशराय बच्चन का जन्म इलाहाबाद के चक मोहल्ले में एक संभ्रांत कायस्थ परिवार में 27 नवंबर 1907 को हुआ। उन्हें नाम दिया गया ‘हरिवंशराय’ और घर में उन्हें प्यार से ‘बच्चन’ पुकारा जाता था। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. की परीक्षा पास की और वहीं अध्यापन करने लगे। 1952 में विलियम बटलर येट्स के साहित्य पर शोध के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय गए। स्वदेश वापसी पर आकाशवाणी में प्रोड्यूसर बने, फिर 1955 में विदेश मंत्रालय में ‘हिंदी विशेषाधिकारी’ के रूप में नियुक्त किए गए। 1966 में राष्ट्रपति द्वारा उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। 

उनकी कविता-यात्रा बचपन से ही शुरू हो गई थी और स्कूली दिनों से तुकबंदियाँ करने लगे थे। 1933 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए कवि-सम्मेलन में उनके द्वारा ‘मधुशाला’ के पाठ को श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया और धीरे-धीरे उनकी मंचीय ख्याति इतनी बढ़ गई कि प्रेमचंद ने भी एक बार कहा कि मद्रास में भी यदि कोई किसी हिंदी कवि का नाम जानता है तो वह बच्चन का नाम है। 

उनका प्रथम विवाह श्यामा से 1927 में हुआ। 1936 में पैसे के अभाव में क्षयरोग के अधूरे इलाज के कारण श्यामा की मृत्यु हो गई। उनका दूसरा विवाह 1942 में तेजी सूरी से हुआ। 

उनका पहला काव्य-संग्रह ‘तेरा हार’ 1932 में प्रकाशित हुआ। 1935 में प्रकाशित उनका दूसरा संग्रह ‘मधुशाला’ उनकी स्थायी लोकप्रियता और प्रसिद्धि का कारण बना। बच्चन मधुशाला का पर्याय ही बन गए। इन दोनों काव्य-संग्रहों के अतिरिक्त उनके दो दर्जन से अधिक अन्य संग्रह प्रकाशित हुए। कविताओं के अलावे उनकी आत्मकथाएँ और उनके अनुवाद भी हिंदी में उनकी स्थायी यशःकीर्ति का कारण हैं। उन्होंने बाल-साहित्य और निबंध लेखन भी किया। 

प्रमुख कृतियाँ

काव्य-संग्रह : तेरा हार (1929), मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), आत्म-परिचय (1937), निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काल (1946), खादी के फूल (1948), सूत की माला (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर-उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962), दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967), कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969), जाल समेटा (1973), नई से नई-पुरानी से पुरानी (1985)

आत्मकथा : क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969), नीड़ का निर्माण फिर (1970), बसेरे से दूर (1977), दशद्वार से सोपान तक (1985)

अनुवाद : खैयाम की मधुशाला (1938), मैकबेथ (1957), जनगीता (1958), उमर खैयाम की रूबाइयाँ (1959), ओथेलो (1959), नेहरू: राजनैतिक जीवन चरित (1961), चौंसठ रूसी कविताएँ (1964), मरकत द्वीप का स्वर (येट्स की कविताएँ,1965), नागर गीता (1966), हैमलेट (1969), भाषा अपनी भाव पराए (1970), किंग लियर (1972)

निबंध-संग्रह : कवियों में सौम्य संत (1960), नए-पुराने झरोखे (1962), टूटी-छूटी कड़ियाँ (1973)

उनकी समस्त रचनात्मकता को ‘बच्चन रचनावली’ के नौ खंडों में प्रकाशित किया गया है।
उन्हें ‘दो चट्टानें’ काव्य-संग्रह के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार और उनकी आत्मकथा के लिए सरस्वती सम्मान से नवाज़ा गया। भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया।        

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