हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार कामतानाथ का नवीनतम उपन्यास है – ‘पिघलेगी बर्फ’। इसमें एक ऐसे कथानायक का चित्रण है जो नियति के हाथों विवश होकर देश-विदेश की धूल छानने को मजबूर है। परिस्थितियाँ उसे लाहौर के खूबसूरत बाजार से लेकर वर्मा और मलाया के जंगलों से होते हुए तिब्बत के बर्फीले मैदानों तक ले जाती हैं। वहाँ तिब्बती युवती के प्रेम में पड़कर वह अपने सुखद भविष्य के सपने बुनता है, किन्तु इस प्रक्रिया में एक अछूती संस्कृति के क्रमिक विनाश का चश्मदीद गवाह बन जाता है। उसकी इस जोखिम-भरी जीवन-यात्रा में मौत उसे कितनी ही बार करीब से छूती हुई निकल जाती है। वापस अपने देश आकर वह बदली हुई स्थितियों के रू-ब-रू होता है-सब कुछ उसकी पहुँच के बाहर। अन्त में वह एक ऐसे तन्त्र का पुर्जा बनने लगता है जिसके तार भ्रष्ट राजनेताओं और अपराधियों से जुड़े होते हैं। जीने की विवशता और समय के थपेड़े आदमी को कहाँ से कहाँ ले जाते हैं, उपन्यास का मूल कथ्य यही है।
सातवें दशक के समर्थ कथाकार कामतानाथ का जन्म 22 सितंबर, 1934 को लखनऊ में हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में उन्होंने एम.ए. किया। तत्पश्चात 1955 में उन्होंने रिजर्व बैंक में नौकरी कर ली। वहीं कुछ मित्रों के साथ मिलकर उन्होंने ‘साहित्योदय’ नाम का एक बुक-क्लब बनाया, जिसमें लोग आपस में पैसे जमा करके पुस्तकें ख़रीदते और बाद में लॉटरी डालकर उन्हें आपस में बाँट लेते। सोमरसेट याम, हेमिंग्वे, गोर्की, टालस्टाय आदि की पुस्तकें और हिंदी के महत्वपूर्ण लेखकों की पुस्तकें भी इसी क्लब के द्वारा ख़रीदकर उन्होंने पढ़ीं। बचपन से ही पड़े अध्ययन-लत ने उन्हें लेखनी की ओर मोड़ दिया। साथ ही साथ, बैंक में नौकरी के दौरान ही वे मज़दूरों के आंदोलन से जुड़ गए तथा बैंक के कर्मचारी संगठन से सम्बद्ध हो गए। इस तरह ताज़िंदगी लेखन और आंदोलन उनके साथ रहा।
गुर्दे की बीमारी के कारण 7 दिसंबर 2012 को उनका निधन हो गया।
रचनाएँ:
उपन्यास
समुद्र तट पर खुलने वाली खिड़की
सुबह होने तक
एक और हिंदुस्तान
तुम्हारे नाम
काल-कथा (दो खंड)
पिघलेगी बर्फ़
कहानी संग्रह
छुट्टियाँ
तीसरी साँस
सब ठीक हो जाएगा
शिकस्त
रिश्ते-नाते
आकाश से झाँकता वह चेहरा
सोवियत संघ का पतन क्यों हुआ
लाख की चूड़ियाँ
नाटक
दिशाहीन
फूलन
कल्पतरु की छाया
दाखला डॉट काम
संक्रमण
वार्ड नं एक (एकांकी)
भारत भाग्य विधाता (प्रहसन)
औरतें (गाइ द मोपांसा की कहानियों पर आधारित)
पैसे की दुनिया
अनुवाद
प्रेत (घोस्ट : हेनरिक इब्सन)
सुबह होने तक, एक और हिंदुस्तान, छुट्टियाँ कल्पतरु की छाया; दाखला डॉट कॉम, संक्रमण आदि इनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं। इन्हें 'पहल सम्मान', मध्यप्रदेश साहित्य परिषद की ओर से ‘मुक्तिबोध पुरस्कार', ‘यशपाल पुरस्कार', ‘साहित्य भूषण' तथा ‘महात्मा गांधी सम्मान’ प्राप्त हो चुका है। 7 सितंबर, 2072 को लखनऊ में इनका निधन हो गया।
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