प्रस्तुत उपन्यास ‘परछाइयों का समयसार‘ में नताशा की कहानी सिर्फ़ प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझती एक युवा लड़की के प्रतिष्ठापित होने की कहानी भर नहीं है। यह बाहर से भीतर की यात्रा है। अस्मिता और अस्तित्व के सवालों से परे अपने पूर्णत्व को पा जाने के अहसास की कहानी है। इन परछाइयों के बीच दर्द की साझेदारी है। इन परछाइयों में गहन दृश्यात्मकता है।