ओ मेरे सपने प्रस्तुत पुस्तक में मनुष्य ख़ुद से आत्मसात होता है। ख़ुद में एक तादात्मय पैदा करता है। मनुष्य अपने सपनों के साथ जीता है और जब उसके सपने पूरे हो जाते हैं तो उसे सँवारता है।
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