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लेखक : अशोक भौमिक

संस्करण संख्या : 001

प्रकाशक : अंकिता प्रकाशन, गाजियाबाद

प्रकाशन वर्ष : 2007

श्रेणियाँ : उपन्यास

पृष्ठ : 127

सहयोगी : भारतीय भाषा परिषद ग्रंथालय

मोनालीसा हँस रही थी

पुस्तक: परिचय

अशोक भौमिक का यह उपन्यास बहुत दिनों बाद तमाम महत्वकांक्षाओं की उड़ान के बीच रिश्तों के ख़त्म और ख़तरनाक होने की ऐसी कहानी है जो लखनऊ, लंदन, आज़मगढ़, फ्रांस, लियोनार्दो, किशन और मुंबई के अलग-अलग समय और अलग-अलग शहर बीच घुमती है। लेकिन किरदारों से कहानी ऐसी बुनी गई जैसे सब एक दूसरे के समकालीन हों। बड़ा कलाकार कितने बड़ों का प्यादा होता है और उसकी कला बाज़ार में बिक कर क्या हो जाती है। इन सब यथार्थ पर मोनालीसा का हंसना। हम सब किसी बाहरी एजेंट की तय की हुई शर्तों के अनुसार कुछ पाने की होड़ में जानवर होते हुए लोगों के लिए यह कहानी आईना का काम कर सकती है। वो तमाम लोग जो अपने अपने संस्थानों में महान और मैनेजिंग डाइरेक्टर होना चाहते हैं,उन्हें मोनालीसा की हंँसी को समझना चाहिए। इस कहानी को पढ़ना चाहिए। लेकिन मोनालीसा हंँस रही थी पढ़ना ज़रूरी है। पेरिस तक उड़ान भरने की चाह में अपने भीतर का आज़मगढ़ गंवा देने वाला किशन और उसके जैसे तमाम हम लोग। आइये इस कहानी का पाठक बन कर ख़ुद को ढूंँढते हैं वहांँ जाकर जहांँ पहले से पहुंँचकर मोनालीसा हंँस रही है।

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