‘तार सप्तक’ के कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 को मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ। उनमें कविता का बीज उनके पिता देवीचरण माथुर से पड़ा जो स्वयं कवित्त, सवैयाँ और दोहे लिखते थे और उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ था। हिंदी में उनकी कविता-यात्रा का आरंभ 1941 में प्रकाशित ‘मंजीर’ काव्य-संग्रह से हुआ जिसकी भूमिका निराला ने लिखी थी। वह माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन सरीखे कवियों की विद्रोही काव्य चेतना से प्रभावित थे। 1943 में अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ में उन्हें भी शामिल किया गया। उनका विवाह शकुंत माथुर से हुआ जो अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक' में शामिल थीं। वह 'ऑल इंडिया रेडियो' में अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे और लोकप्रिय रेडियो चैनल 'विविध भारती' उन्हीं की संकल्पना का मूर्त रूप है।
उनमें प्रगति और प्रयोगवादी धारा—दोनों का समावेश था। वे मार्क्सवाद से प्रभावित थे। उनके स्वयं के शब्दों में—‘‘मार्क्सवाद को मैंने अपने देश की जन-परंपरा और सांस्कृतिक उत्स की मिट्टी में रोप कर आत्मसात कर लिया और एक नई जीवन-दृष्टि मुझे प्राप्त हुई। मुक्ति के वही मूल्य मेरी कविता को झंकृत और उद्दीप्त करते रहे हैं।” उनकी कविताओं में लोक-चेतना और वैज्ञानिक-चेतना दोनों के दर्शन हो जाते हैं। मालवा का प्राकृतिक वैभव उस क्षेत्र के अन्य कवियों-गद्यकारों की तरह उनके यहाँ भी समृद्धि से उतरा है।
उनका एक गीत ‘छाया मत छूना मन’ और ‘वी शैल ओवरकम’ का हिंदी भावांतर ‘हम होंगे कामयाब’ अत्यंत लोकप्रिय रहा है। कविता और गीतों के अतिरिक्त उन्होंने एकांकी नाटक, नाटक, कहानी, आलोचना में भी कार्य किया है।
‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘जनम क़ैद’, ‘मुझे और अभी कहना है’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बंध नहीं सका’, ‘मैं वक़्त के हूँ सामने’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘छाया मत छूना मन’ आदि उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं।
‘मै वक़्त के हूँ सामने' के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा व्यास सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें शलाका सम्मान से भी पुरस्कृत किया गया।
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