'मन्नू की वह एक रात' इस उपन्यास को लिखते वक़्त लेखक को अद्भुत अनुभव प्राप्त हुआ है। यह उपन्यास पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है कि बीसवीं सदी के किसी 'स्ट्रीम ऑफ कांशसनेसट' से गुज़र रहा हूँ। 'घुटन, कुंठा, परंपरा और अपनी पराधीनता के ख़िलाफ़ विद्रोह' सबके सब एक साथ आ खड़े हुए हैं।
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