लहर उन्नीसवीं सदी के हिंदी साहित्य जगत में सुप्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण मासिक पत्रिका थी। इसका प्रथम अंक जुलाई 1957 में सुपरिचित कवि प्रकाश जैन के सम्पादन में प्रकाशित हुआ। सत्रह सालों तक नियमित यह पत्रिका अजमेर (राजस्थान) से प्रकाशित होती रही परंतु फिर कुछ आर्थिक संकटों के कारण पत्रिका को बंद करना पड़ा। प्रकाश जैन जी इस पत्रिका को लेकर बहुत गंभीर थे उन्होंने तमाम तरह के प्रयास करके 1980 में इसका पुन: प्रकाशन आरंभ किया परंतु इस बार भी करीब छ: वर्षों के उपरांत 1986 में इसे एक बार फिर आर्थिक संकटों से जूझते हुए बंद होना पड़ा। उन्नीसवी सदी में यह एक मात्र एकलौती पत्रिका थी जो करीब 25 सालों तक निर्विवाद रूप से प्रकाशित होती रही। हिंदी पट्टी में आज भी इस तरह के उदाहरण बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। इस पत्रिका की महत्ता को हम इससे ही समझ सकते हैं कि आज भी हिंदी का कोई भी गंभीर शोध-प्रबंध लहर के हवालों के बगैर पूरा नही होता हिंदी की गंभीर रचनात्मकता लहर के पृष्ठों पर इतिहास के रूप में दर्ज है। लहर इसके सम्पादक प्रकाश जैन के जीवनयापन का साधन थी इसके बावजूद 25 वर्षों में इस पत्रिका में कभी कोई स्तरहीन रचना प्रकाशित नही हुई। इसके एक से बढ़कर एक विशेषांक प्रकाशित हुए जिनमे से 1957 का कविता विशेष अंक, 1958 का कहानी विशेषांक और विश्व कविता विशेषांक बहुत ही चर्चित हुए। इसी क्रम में नागार्जुन,मुक्तिबोध और राजकमल चौधरी जी पर भी लहर के विशेषांक अति महत्वपूर्ण हैं।