'क्षितिज पार' इस पुस्तक की कहानियाँ विद्रोह ही नहीं करती, आंदोलित भी करती हैं। इनका विद्रोह सूक्ष्म है, जिसमें इक दृष्टि है, क्षितिज पार जाने की ललक है।
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