खंडहर की आत्माएँ प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने उस व्यक्ति के अंर्तरमन को खंडहर कहा है जो अपने जीवन में बहुत अकेला पड़ जाता है। और अपने अंदर ही अंदर की जीती जागती आत्मा को मार देता है। और धीरे-धीरे ख़ुद में इतना ख़ालीपन, खंडहरपन पनपा लेता है उसी स्थिति में जीने का आदि हो जाता है।
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