कमलेश्वर की श्रेष्ठ कहानियां प्रस्तुत पुस्तक में रचनाकार की चर्चित कहानियों का संकलन है। इन कहानियों में सामाजिक परिवेश के साथ-साथ, यथार्थ की स्थिति को दिखाया गया है।
कमलेश्वर नई कहानी के प्रचारित त्रिकोण की एक महत्वपूर्ण कड़ी थे। नई कहानी का त्रिकोण, यानी राजेंद्र यादव, मोहन राकेश और कमलेश्वर। झन तीनों में केवल कमलेश्वर ही ऐसे रहे जिन्होंने स्वयं को केवल कहानी-उपन्यासरों तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने सरकारी नौकरी की और दूरदर्शन के महानिदेशक बने। स्क्रिप्ट्स औरसंवाद लेखक के रूप में फ़िल्मों से जुड़कर पैसे और शोहरत कमाई। इसी बीच बीच नई कहानियाँ, सारिका, गंगा तथा दैनिक जागरण जैसे पत्र-पत्रिकाओं का संपादन करते हुए पत्रकारिता और साहित्य-जगत से भी जुड़े रहे।
कमलेश्वर का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में 6 जनवरी, 1932 में हुआ था। जब वे तीन साल के थे तब उनके पिता जी का देहांत हो गया था। कमलेश्वर सात भाई थे जिनमें से पाँच का देहांत हो गया था। जब वे किशोर थे तभी उन्हें क्रांतिकारी समाजवादी दल में संदेशवाहक के तौर पर शामिल कर लिया गया था। वे क्रांतिकारियों के पत्र एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाया करता था। मैनपुरी क्रांतिकारियों का एक प्रमुख केंद्र था। अँग्रेज़ों ने आगरे पर कब्ज़ा कर लिया था पर मैनपुरी तब तक मुक्त था। अतः बड़ी संख्या में क्रांतिकारी वहाँ शरण लिया करते थे। इसी कारण से उनका क्रांतिकारियों मिलना संभव हुआ और पार्टी में शामिल कर लिए गए। कमलेश्वर का पूरा नाम कमलेश्वर सक्सेना था। लेकिन क्रांतिकारी पार्टी में शामिल होने के कारण उनमें यह भावना बलवती हो गई थी कि जातिसूचक उपनाम इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसीलिए उन्होंने अपना नाम सिर्फ़ कमलेश्वर रखा।
प्रारंभिक पढ़ाई के पश्चात् कमलेश्वर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
उन्हें 2005 में 'पद्मभूषण” अलंकरण से राष्ट्रपति महोदय ने विभूषित किया। उनकी पुस्तक “कितने पाकिस्तान” पर उन्हें साहित्य अकादमी मिला।
कश्मीर एवं अयोध्या आदि पर वृत्त चित्रों तथा दूरदर्शन के लिए “बन्द फाइल” एवं “जलता सवाल' जैसे वृत्त-चित्रों का भी लेखन-निर्देशन किया। उन्होंने अनेक हिन्दी फिल्मों के लिए पटकथाएं लिखीं तथा भारतीय दूरदर्शन श्रृंखलाओं के लिए दर्पण, चंद्रकांता, बेताल पच्चीसी, विराट युग आदि लिखे। भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम पर आधारित पहली प्रामाणिक एवं इतिहासपरक जनमंचीय मीडिया-कथा “हिन्दुस्तां हमारा” का लेखन किया।
इनके कहानी संग्रहों के नाम हैं :
जॉर्ज पंचम की नाक, राजा निरबंसिया मांस का दरिया, इतने अच्छे दिन, कोहरा, कथा-प्रस्थान, मेरी प्रिय कहानियाँ।
कमलेश्वर ने आत्मपरक संस्मरण भी लिखे । इनकी संस्मरण-पुस्तकों के नाम हैं: जो मैंने जिया, यादों के चिराग, जलती हुई नदी।
उनके उपन्यास हैं :
एक सड़क सत्तावन गलियाँ, लौटे हुए मुसाफिर, डाक बंगला, समुद्र में खोया हुआ आदमी, तीसरा आदमी, काली आंधी, वही बात, आगामी अतीत, सुबह... दोपहर... शाम, रेगिस्तान, कितने पाकिस्तान।
“कितने पाकिस्तान' ने उन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान।
74 वर्ष की उम्र में 27 जनवरी 2007 को फ़रीदाबाद में उनका निधन हो गया।
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