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पुस्तक: परिचय

इंसान के खंडहर कहानी संग्रह मोहन राकेश का है | खंडहर में सिर्फ ईंट और गारा नहीं, बल्कि असंख्य भावनाएँ और आस्था भी बसी होती हैं। जानें कैसे इंसानियत का सम्मान हमें सच्ची पूजा की ओर ले जाता है। इन कहानियों में अभिजात वर्ग की कुलबुलाती हुई आत्मा है और मध्यम वर्ग की घुटी हुई चेतना भी है।

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लेखक: परिचय

मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। वे मूलतः एक सिंधी परिवार से थे। उनके पिता कर्मचन्द बहुत पहले सिंध से पंजाब आए थे। 


मोहन राकेश नई कहानी आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण कथाकार थे। पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी और अँग्रेज़ी में एम. ए. थे। जीविका हेतु अध्यापन से जुड़े। कुछ वर्षो तक 'सारिका' के संपादक भी किए। 'आषाढ़ का एक दिन','आधे अधूरे' और ‘लहरों के राजहंस’ के महत्वपूर्ण नाटकों के रचनाकार हैं। 'संगीत नाटक अकादमी' से सम्मानित हैं। 


उनकी डायरी हिंदी में इस विधा की सबसे सुंदर कृतियों में एक मानी जाती है। सर्वप्रथम कहानी के क्षेत्र में सफल लेखन के बाद नाट्य-लेखन में ख्याति के नए स्तंभ स्थापित किए। हिंदी नाटकों में भारतेंदु और प्रसाद के बाद का युग मोहन राकेश युग है, ऐसा कह सकते हैं। उन्होंने हिंदी में हो रहे नाट्य-लेखन को रंगमंच पर प्रतिष्ठित किया। 


मोहन राकेश के नाटक पहली बार हिंदी को अखिल भारतीय स्तर ही नहीं प्रदान किया वरन् उसके सदियों के अलग-थलग प्रवाह को विश्व नाटक की एक सामान्य धारा की ओर भी मोड़ दिया। इब्राहीम अलकाजी, ओम शिवपुरी, अरविन्द गौड़, श्यामानंद जालान, राम गोपाल बजाज और दिनेश ठाकुर जैसे प्रमुख भारतीय निर्देशकों ने मोहन राकेश के नाटकों का निर्देशन किया।


3 दिसम्बर 1972 को नई दिल्ली में उनका आकस्मिक निधन हुआ।


प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास:
अँधेरे बंद कमरे 1961, अंतराल 1972,  न आने वाला कल 1968 ,काँपता हुआ दरिया/अपूर्ण।


नाटक:
आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे, पैर तले की ज़मीन (अधूरा, कमलेश्वर ने पूरा किया), सिपाही की मां, प्यालियाँ टूटती हैं, रात बीतने तक, छतरियाँ, शायद, हंः।
एकांकी:
अण्डे के छिल्के, बहुत बड़ा सवाल


कहानी संग्रह:
क्वार्टर तथा अन्य कहानियाँ, पहचान तथा अन्य कहानियाँ, वारिस तथा अन्य कहानियाँ।
निबंध संग्रह:
परिवेश


अनुवाद:
मृच्छकटिक, शाकुंतलम।


यात्रा वृतांत:
आख़िरी चट्टान तक उपन्यास

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