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पुस्तक: परिचय

'हिंदू राज्य-तंत्र' इस ग्रंथ में हिंदू राज्य तंत्र के कुछ मुख्य लक्षणों का दिग्दर्शन कराया गया है। इस ग्रंथ में वैदिक काल की समिति और वैदिक काल की सभा का विवेचन किया गया है।

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लेखक: परिचय

स्वतंत्रतापूर्व के ख्यातिलब्ध इतिहासकार, साहित्यकार, भाषा-अध्येता, संपादक, अनुवादक जनबुद्धिजीवी डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल का जन्म उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर में 27 नवंबर सन्‌ 1881 को हुआ था। 
मिर्जापुर और काशी में शिक्षा प्राप्त करने बाद आप इंग्लैंड चले गए और वहाँ से 'बार एट-ला' की उपाधि प्राप्त करके सन्‌ 1910 में आपने कलकत्ता में वकालत प्रारम्भ की। कलकत्ता विश्वविद्यालय के तत्कालीन उपकुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने आपको विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त किया; किंतु अध्यापन में रुचि न रहने के कारण थोड़े दिन बाद ही वहाँ से त्यागपत्र दे दिया। 

सन्‌ 1914 में आपने कलकत्ता से पटना आकर हाईकोर्ट में बैरिस्ट्री शुरू की और आपने बिहार प्रांत के तत्कालीन प्रशासक एडवर्ड गेट महोदय को प्रेरित करके पटना में एक म्यूजियम की स्थापना का उल्लेखनीय कार्य कराए। आपने 'बिहार रिसर्च सोसाइटी' की पत्रिका का संपादन करने के साथ-साथ सन्‌ 1933 में “बिहार प्रांतीय हिंदी-साहित्य-सम्मेलन' के ग्यारहवें अधिवेशन की भागलपुर में अध्यक्षता भी की। सन्‌ 1935 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की अध्यक्षता में हुए अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन' के इन्दौर अधिवेशन के अवसर पर आयोजित 'इतिहास परिषद्‌” के अध्यक्ष भी आप रहे। उन्हीं दिनों बड़ौदा में “इंडिया ओरियण्टल कॉन्फ्रेंस' का छठा अधिवेशन भी आपकी अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।

जिन दिनों आप इंग्लैंड में पढ़ते थे उन दिनों आपकी घनिष्ठता डॉ० ग्रियर्सन तथा डॉ० हार्नली के अतिरिक्त मिस्र, तुर्की, जर्मनी और फ़्रांस के अनेक विद्वानों से हो गई थी। आपने कई बार जर्मनी, फ़्रांस ओर स्विट्जरलैण्ड आदि देशों की यात्राएँ की। इंग्लैंड जाने से पूर्व आपके लेख हिंदी के विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करते थे, और वहाँ से भी आपने अनेक लेख 'सरस्वती' में प्रकाशनार्थ भेजे थे। 
कुछ समय तक आप 'नागरी प्रचारिणी सभा! के उपमंत्री भी रहे। नागरीप्रचारिणी पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य भी रहे। पहले आप हिंदी में कविताएँ भी लिखते थे लेकिन पुरातत्व और इतिहास-शोध, लेखन में व्यस्त होने के कारण आपका हिंदी लेखन कालांतर में छूट गया। 

आप इतिहास तथा पुरातत्व के गंभीर विद्वान्‌ थे तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी आपका योगदान अनन्य था। सन्‌ 1906 में आपने अपने जातीय पत्र “कलवार गजट' का संपादन किया। पटना से सन्‌ 1914 में प्रकाशित 'पाटलिपुत्र' के भी प्रथम सम्पादक आप ही थे। इनके अतिरिक्त आपने कानून, इतिहास, पुरातत्व, अर्थशास्त्र और भाषाशास्त्र से संबंधित अनेक शोधपूर्ण लेख तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में लिखे थे। 
सन्‌ 1936 में डॉ० राजेंद्र प्रसाद के सहयोग से 'इतिहास परिषद्‌' नामक संस्था की भी स्थापना आपने की।
उसी वर्ष पटना विश्वविद्यालय ने आपको डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।
आपकी प्रकाशित पुस्तकों के नाम:  
'हिंदू पालिटी', 'ऐन इंपीरियल हिस्ट्री ऑव इंडिया', 
'ए क्रॉनॉलजी ऐंड हिस्ट्री ऑव नेपाल' हैं,
हिंदू, पालिटी का हिंदी अनुवाद (श्री रामचंद्र वर्मा) 'हिंदू राज्यतंत्र' के नाम से नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी से प्रकाशित। 

4 अगस्त 1937 को आपका निधन हो गया। 

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