असग़र वजाहत ने 'हिंदू पानी-मुस्लिम पानी' पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि धर्म के प्रति निष्ठा होने और साम्प्रदायिक होने में बहुत अंतर है। वे कहते हैं कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक विश्वासों पर अडिग रहते हुए जनहित में काम कर सकता है, लेकिन साम्प्रदायिक व्यक्ति या समूह जो धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं, वे जनविरोधी काम करते हैं। कथाकार असग़र वजाहत ने अपनी पुस्तक में कहा कि राजनीति ने जिस प्रकार से धर्म का इस्तेमाल किया है, उससे साम्प्रदायिकता बढ़ी है, दूसरी ओर देश के नेताओं को शिक्षा और जागरुकता के प्रति जो चिंता होनी चाहिए थी वो नहीं रही है, क्योंकि उन्हें धर्मांधता फैलाना ही हितकर लगा। असग़र वजाहत ये सब किनके बारे में लिख रहे और बोल रहे हैं, यह साफ-साफ समझा जा सकता है, लेकिन देश में अधिकांश मदरसों की धर्मांध धार्मिक शिक्षा और ज़ेहाद पर वे खामोश नज़र आते हैं, काश वे इसपर भी बोलने की हिम्मत करते। यहां यह तथ्य भी परिलक्षित होता है कि 'हिंदू-मुस्लिम' सौहार्द की आड़ में बड़ी खूबसूरती से 'मैसेज' दिया जाता है।
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