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लेखक: परिचय

समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख कवि चंद्रकांत देवताले का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में 7 नवंबर 1936 को जौलखेड़ा, बैतूल, मध्य प्रदेश में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा इंदौर में हुई। उन्होंने अपना शोध-पत्र मुक्तिबोध पर लिखा था। 

छठे-सातवें दशक में उनकी कविताएँ उस दौर की लघु पत्रिकाओं में छपने लगी थीं और उनके नए लहज़े, मद्धम रोष और प्रतिरोध को सुना जाने लगा था। उनका पहला कविता-संग्रह ‘हडि्डयों में छिपा ज्वर’ 1973 में बहुचर्चित 'पहचान’ सीरीज़ के अंतर्गत प्रकाशित हुआ। उनकी कविताओं में समसामयिकता का यथार्थ चित्रण पाया जाता है जहाँ उन्होंने आमज के अपने विडंबनात्मक जीवन तथा उसमें अपनी और किसी प्रकार संघर्ष कर रहे असंख्य लोगों की तनावपूर्ण जिजीविषा का कवि’’ कहा है और मानव जीवन के साथ उनकी कविता के रिश्ते को सुख-दुख के संगाती का, जागरूकता तथा ऐंद्रियता का रिश्ता कहा है। 

उनकी कविताओं में स्त्रियाँ अपनी घरेलू, आत्मीय और वर्गीय उपस्थिति में उतरती रही हैं। इस संबंध में एक दावा रहा है कि हिंदी में स्त्रियों पर सबसे अधिक और सबसे अच्छी कविताएँ चंद्रकांत देवताले के ही पास हैं। समादृत कवि वीरेन डंगवाल ने अपनी कविताओं में  आम आदमी के संघर्षों, अभावों, प्रतिरोधों को अभिव्यक्ति दी है। उनकी कविताओं में बार-बार उभरते और लौटते रहते घरेलू अपनेपन के इमेजेज़ के लिए उन्हें घर, परिवार और पड़ोस का कवि भी कहा गया है। विष्णु खरे ने उन्हें ‘‘व्यापक और प्रतिबद्ध अर्थों में इस देश के इस कठिन समय में अपनी निजी, पारिवारिक और सामाजिक ज़िंदगी, भारतीय समाविताओं की स्त्रियों को इन आत्मीय शब्दों में दर्ज किया है—‘‘और देवताले की स्त्रियाँ! शोक और आह्लाद और उनके विलक्षण झुटपुटे का वह महोत्सव, जिसका एक छोर एक विराट अमूर्तन में है- पछीटे जाते कपड़ों, अँधेरी गुफा में गुँधे आटे से सूरज की पीठ पर पकती असंख्य रोटियों आदि-आदि में, गोया यह सब करती स्त्री स्वयं कर्मठ मानवता है। और दूसरा छोर है घर में अकेली उस युवती के निविड़ एकांत में जहाँ उसका अकेलापन ही उसका उल्लास, उसका भोग उसकी यातना, उसके भी आगे उसका स्वातंत्र्य है।’’

‘हड्डियों में छिपा ज्वर’ (1973), ‘दीवारों पर ख़ून से’ (1975), ‘लकड़बग्घा हँस रहा है’ (1980), ‘रोशनी के मैदान की तरफ़’ (1982), ‘भूखंड तप रहा है’ (1982), ‘आग हर चीज़ में बताई गई थी’ (1987), ‘बदला बेहद महँगा सौदा’ (1995), ‘पत्थर की बैंच’ (1996), ‘उसके सपने’ (1997), ‘इतनी पत्थर रोशनी’ (2002), ‘उजाड़ में संग्रहालय’ (2003), ‘जहाँ थोड़ा सा सूर्योदय होगा’ (2008), ‘पत्थर फेंक रहा हूँ’ (2011) उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। ‘मुक्तिबोध: कविता और जीवन विवेक’ उनकी आलोचना की किताब है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘दूसरे-दूसरे आकाश’ और ‘डबरे पर सूरज का बिंब’ का संपादन किया है। ‘पिसाटी का बुर्ज’ में उन्होंने दिलीप चित्रे की कविताओं का मराठी से हिंदी अनुवाद किया है।

चंद्रकांत देवताले को उनके कविता-संग्रह ‘पत्थर फेंक रहा हूँ’ के लिए वर्ष 2012 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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